आलोक रंजन, जल से जलाशय कैंपेन, हैय्या
मनुष्य का जीवन साफ हवा, पानी और ज़मीन पर निर्भर है, लेकिन आज न साफ हवा बची है और न पानी। बचपन से सुनते आए हैं कि जल ही जीवन है लेकिन इंसान की अनदेखियों की वजह से आज पूरा विश्व जल संकट से जूझ रहा है। भारत की स्थिति भी बहुत नाज़ुक है — नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2030 तक पानी की गंभीर समस्या होने वाली है जिसके कारण 40% से ज़्यादा लोग साफ पानी के लिए तरस जाएंगे। इसका बहुत बड़ा उदाहरण हम अभी देख सकते हैं कि जब पूरा विश्व कोरोना जैसी महामारी से लड़ रहा है, वहीं देश का एक बड़ा तबका कोरोना के साथ साफ़ पानी के लिए भी जद्दोजहद कर रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डबल्यूएचओ) ने अभी हाथ धोने और साफ़-सफाई पर विशेष ध्यान देने को कहा है, लेकिन जब इंसान पीने के पानी क लिए तरस रहा हो तो वह सफाई का ध्यान कैसे रखे? महामारी के इस दौर में वह हर दिन अपनी जान दाव पर लगा रहा है।
वर्तमान स्थिति
भारत अपनी 80% पानी की ज़रूरतें भूजल से पूरी करता है, जो हमें दुनिया में सबसे ज़्यादा भूजल प्रयोग करने वाला देश बना देता है। बढ़ते जल संकट की वजह से भारत में 1995 से 2018 के बीच 33,2603 किसानों ने आत्महत्या की। आज देश का 70% भूजल प्रदूषित है, साफ़ पानी ना मिलने के कारण हर साल 20 लाख लोग अपनी जान गंवा देते हैं। अगर हम ग्लोबल वाटर इंडेक्स की बात करे तो 122 देशों की सूची में भारत 120वें स्थान पर है।
नीति आयोग के 2018 के कम्पोजिट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स के अनुसार भारत में देश की राजधानी दिल्ली समेत 20 शहरों में 2020 तक भूजल पूरी तरह ख़त्म हो जायेगा, जिससे 10 करोड़ लोग प्रभावित होंगे। National Geophysical Research Institute के एक अध्ययन के अनुसार शहरों में हर साल 10 cm भूजल कम होता जा रहा है। ऐसे में देश की राजधानी जहां सबसे ज्यादा पाइपलाइन कनेक्शन हैं, वहां भी 18% यानि लगभग 62,5000 ऐसे घर है जहां पाइपलाइन की सुविधा नहीं है, ये लोग अपनी पानी की ज़रूरतों को कैसे पूरा करेंगे?
दिल्ली में पानी की आपूर्ति की समस्या पहले से ही थी — यहां हर दिन 1200 MCG पानी की ज़रूरत होती है, लेकिन आपूर्ति सिर्फ 900 MCG की जाती है। कोरोना महामारी के दौरान पानी की ज़रूरत और बढ़ गई है, जिसके कारण दिल्ली में पानी की समस्या और गंभीर हो गई है। दिल्ली के कई इलाकों में 3–4 दिन तक पानी नहीं आ रहा है, कच्ची कॉलोनी में पानी के टैंकर नहीं पहुंच पा रहे हैं। इस महामारी के दौरान जब लोगों के सामने रोज़ी-रोटी का संकट खड़ा है, ऐसे समय में लोग अपनी जमापूंजी से पानी खरीद कर पी रहे हैं और जो सक्षम नहीं हैं, वो तो अपनी ज़िंदगी भगवान के भरोसे ही कर चुके हैं।
हम इस स्थिति में कैसे पहुंचे?
कभी भारत को जल समृद्ध देश माना जाता था, यहां पानी की ज़रा भी कमी नहीं थी। इसकी वजह थी चारों ओर बहती नदियां और शहरों और गांवों में बने जलाशय। आज हमारी नदियां नालों में बदल चुकी हैं, झील, तालाबों जैसे जलाशय जो भूजलस्तर बनाए रखते थे वो ख़त्म हो चुके हैं। अगर दिल्ली की ही बात करें तो दिल्ली में 1100 से ज़्यादा छोटे-बड़े जलाशय हुआ करते थे लेकिन प्रदूषण, ख़राब प्रबंधन और रखरखाव की पहल न किए जाने की वजह से ये ख़त्म होते जा रहे है, जिसका सीधा प्रभाव दिल्ली के भूजलस्तर पर पड़ रहा है, जो लगातार गिरता जा रहा है। अब स्थिति ऐसी है कि दिल्ली में 231 फीट पर भी खारा पानी मिल रहा है। दिल्ली का भूजल पीने योग्य नहीं बचा है, यहां पानी में नाइट्रेट, फ्लोराइड एवं भारी धातुएं बड़ी मात्रा में पाई जाती हैं, जिसकी वजह से जनता भूजल का प्रयोग चाह कर भी नहीं कर सकती।
इस समस्या का संभव हल
दिल्ली को हर साल मानसून के दौरान बारिश से 580 (Million Cubic Meter) पानी मिलता है। जल संचयन के साधन न होने के कारण इसमें से 280 MCM पानी बह जाता है, जो किसी काम नहीं आता। भूजल के स्तर को बरकरार रखने में जलाशयों का बहुत बड़ा महत्व है। जलाशय बारिश के पानी को या घर में इस्तेमाल हुए पानी को जमा करके ज़मीन के अंदर तक पहुंचाते हैं जिससे भूजल स्तर बना रहता है। अगर हम अपने जलाशयों को फिर से जीवित करने में सफल हो गए तो इस जलसंकट पर भी हम काबू पा सकते हैं। भारत में आमतौर पर घर में इस्तेमाल किए गए पानी को नालों या सीवर में बहा दिया जाता है। अगर इसे ट्रीट करके फिर से प्रयोग में लाया जाए तो पानी की मांग में बहुत बड़ी कमी आ सकती है। यह आज के समय की ज़रूरत है कि हर स्तर पर पानी को ट्रीट करके उसका पूर्ण उपयोग किया जाए, ताकि साफ़ पानी पर और तनाव ना पड़े।
सरकार द्वारा की गई पहल
जलसंकट को देखते हुए केंद्र सरकार ने 2019 में जल शक्ति मंत्रालय का गठन किया। मंत्रालय ने नदियों की सफाई की कई योजनाएं निकाली, पर ज़मीनी स्तर पर इनसे कोई बदलाव नहीं आए हैं। हर घर में नल से जल की सुविधा पर ज़ोर दिया गया पर जब स्रोत में पानी नहीं होगा तो नल में पानी कहां से आएगा?
दिल्ली सरकार ने वादा किया था कि 2022 तक दिल्ली का जल संकट ख़त्म हो जाएगा, जिसके लिए 2018 में 250 जलाशयों को पुनर्जीवित करने की बात कही गई, साथ ही बरसात और बाढ़ के पानी को जमा करने के लिए एक पायलट प्रोजेक्ट भी शुरू किया गया। उत्तर पश्चिम दिल्ली के सुंगरपुर गांव में यमुना के किनारे खुदाई कर तालाब बनाने का काम शुरू किया गया है। दिल्ली सरकार का कहना है कि यमुना में बाढ़ आने या नदी का जलस्तर बढ़ने से इस तालाब में पानी भरता है जो रिस कर ज़मीन के अंदर चला जाता है। लेकिन बीते सालों में दिल्ली सरकार या केंद्र सरकार की पहल के बाद भी दिल्ली के जलसंकट में कोई बदलाव नहीं आया है बल्कि स्थिति और खराब ही हुई है।
दिल्ली जल बोर्ड आज भी 4910 ट्यूबवेल के ज़रिए ज़मीन का पानी निकाल रहा है। दिल्ली जल बोर्ड द्वारा सप्लाई किए जाने वाले पानी का बहुत बड़ा हिस्सा, पाइपलाइन में लीकेज या इसके क्षतिग्रस्त हो जाने की वजह से ऐसे ही बह जाता है। जिन कॉलोनी में 3–4 साल पहले पाइपलाइन बिछ चुकी है, वहां लोगो को अब तक कनेक्शन नहीं मिल पाया है। ऐसे में सवाल यह है कि सरकारें जलसंकट को लेकर कितनी गंभीर हैं और इसे लेकर कोई ठोस कदम लेने में और कितना वक़्त लेंगी?
हमारा दाइत्व:
जल संकट हम सभी की समस्या है, हम सभी को मिलकर इसके लिए आवाज़ उठानी होगी। अगर सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं ले रही है तो हमें अपने स्तर पर भी पहल करनी होगी, हमें एकजुट होकर सरकार का ध्यान इस तरफ लाना होगा। आज जो समुदाय पानी की किल्लत झेल रहा है, ज़रूरत है कि हम उनकी आवाज़ बने। हमें अपने घरों के आस-पास के जलाशयों को बचाने के लिए हर तरह के प्रयास करने होंगे। पानी को सोच-समझ कर प्रयोग करना होगा, साथ ही घर पर पानी के रीयूज़ पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है, ताकि उन लोगों को पानी मिल सके जो साफ़ पानी से वंचित हैं। हमें यह बात गांठ बांधकर रख लेनी चाहिए कि अगर हम सभी मिलकर कोशिश नहीं करेंगे तो इस संकट से उबरना संभव नहीं है। और इस लड़ाई में समय हमारा ज़ादा देर साथ नहीं दे पाएगा।
Alok Ranjan is a Senior Campaigner at Haiyya leading the Jal Se Jalashay campaign. The article has been written as part of the Jal Se Jalshay, a community and youth-led campaign by Haiyya to address water crises in Delhi. Following the campaign on twitter @JalSeJalashay.